loader image

इस मोड़ से तुम मुड़ गई

इस मोड़ से तुम मुड़ गई फिर राह सूनी हो गई।

मालूम था मुझको कि हर धारा नदी होती नहीं
हर वृक्ष की हर शाख फूलों से लदी होती नहीं
फिर भी लगा जब तक क़दम आगे बढ़ाऊँगा नहीं,
कैसे कटेगा रास्ता यदि गुनगुनाऊँगा नहीं,
यह सोचकर सारा सफ़र, मैं इस क़दर धीरे चला
लेकिन तुम्हारे साथ फिर रफ़्तार दूनी हो गई!

तुमसे नहीं कोई गिला, हाँ, मन बहुत संतप्त है,
हर एक आँचल प्यार देने को नहीं अभिशप्त है,
हर एक की करुणा यहाँ पर काव्य की थाती नहीं
हर एक की पीड़ा यहाँ संगीत बन पाती नहीं
मैंने बहुत चाहा कि अपने आँसुओं को सोख लूँ
तड़पन मगर उस बार से इस बार दूनी हो गई।

जाने यहाँ, इस राह के, इस मोड़ पर है क्या वजह
हर स्वप्न टूटा इस जगह, हर साथ छूटा इस जगह
इस बार मेरी कल्पना ने फिर वही सपने बुने,
इस बार भी मैंने वही कलियाँ चुनी, काँटे चुने,
मैंने तो बड़ी उम्मीद से तेरी तरफ देखा मगर
जो लग रही थी ज़िन्दगी दुश्वार दूनी हो गई!

इस मोड़ से तुम मुड़ गई, फिर राह सूनी हो गई!

643

Add Comment

By: Dushyant Kumar

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!