loader image

वहाब दानिश के चुनिंदा शेर

जंगलों में घूमते फिरते हैं शहरों के फ़क़ीह
क्या दरख़्तों से भी छिन जाएगा आलम वज्द का


खुल गया राज़ छुपी चाह का सब महफ़िल पर
नाम ले कर जो मिरा उस से पुकारा न गया


जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके
एक तन्हा पेड़ था मेरी तरह जलता हुआ


वो रंग का हुजूम सा वो ख़ुशबुओं की भीड़ सी
वो लफ़्ज़ लफ़्ज़ से जवाँ वो हर्फ़ हर्फ़ से हसीं


इन पर्बतों के बीच थी मस्तूर इक गुफा
पत्थर की नरमियों में थी महफ़ूज़ काएनात


वहाब दानिश के शेर

598

Add Comment

By: Wahab Danish

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!