वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जीने की आरज़ू में कई बार मर गए
इश्क़ फिर इश्क़ है आशुफ़्ता-सरी माँगे है
होश के दौर में भी जामा-दरी माँगे है
आप से चूक हो गई शायद
आप और मुझ पे मेहरबाँ क्या ख़ूब
मैं किस तरह तुझे इल्ज़ाम-ए-बेवफ़ाई दूँ
रह-ए-वफ़ा में तिरे नक़्श-ए-पा भी मिलते हैं
परेशाँ हो के दिल तर्क-ए-तअल्लुक़ पर है आमादा
मोहब्बत में ये सूरत भी न रास आई तो क्या होगा
हुस्न ही तो नहीं बेताब-ए-नुमाइश ‘उनवाँ’
इश्क़ भी आज नई जल्वागरी माँगे है
मिरी समझ में आ गया हर एक राज़-ए-ज़िंदगी
जो दिल पे चोट पड़ गई तो दूर तक नज़र गई
इस कार-ए-नुमायाँ के शाहिद हैं चमन वाले
गुलशन में बहारों को लाए थे हमीं पहले
कुछ तो बताओ ऐ फ़रज़ानो दीवानों पर क्या गुज़री
शहर-ए-तमन्ना की गलियों में बरपा है कोहराम बहुत
उनवान चिश्ती के शेर