तुम ने कैसा ये राब्ता रक्खा
न मिले हो न फ़ासला रक्खा
मुझ सा कोई जहान में नादान भी न हो
कर के जो इश्क़ कहता है नुक़सान भी न हो
ऐसे लगता है कि कमज़ोर बहुत है तू भी
जीत कर जश्न मनाने की ज़रूरत क्या थी
तू रुके या न रुके फ़ैसला तुझ पर छोड़ा
दिल ने दर खोल दिए हैं तिरी आसानी को
तू न रुस्वा हो इस लिए हम ने
अपनी चाहत पे दायरा रक्खा
अपनी सोचें सफ़र में रहती हैं
उस को पाने की जुस्तुजू देखो
सादुल्लाह शाह के शेर