आज़ादी-ए-ख़याल की वुसअ’त को देखिए
रह कर ज़मीं पे करते हैं बात आसमाँ से हम
जीने की कुछ ख़ुशी है न मरने का कोई ख़ौफ़
आज़ाद इस तरह हुए हर दो-जहाँ से हम
ग़ालिब है दिल पे जोश ओ ज़ौक़-ए-सुख़न मिरे
दर्जा में कम नहीं किसी आतिश-ज़बाँ से हम
सत्तर बरस की उम्र जवानों से बढ़ के जोश
इस राज़ को छुपाए हैं अहल-ए-जहाँ से हम
अहबाब नुक्ता-संज सुख़न-दाँ चले गए
‘अहक़र’ हैं अब लगे फ़क़त हिन्दोस्ताँ से हम