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गुलज़ार के चुनिंदा शेर

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया


हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते


कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
आज की दास्ताँ हमारी है


अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा


तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं


मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है


ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में


दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में


एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की


जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है


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By: Sampooran Singh Kalra (Gulzar)

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