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सो गए हैं गान!

सो गए हैं गान!
मत जगाना, अभी आया है किसी का ध्यान!

छंद में कर बंद
प्रिय को बहुत रोका,
दे न पाया पर स्वयं
को हाय धोखा,
नयन को वाणी मिली, पर स्वर हुए पाषाण!

रात आयी नशा लेकर,
चाँद निकला,
याद हो आया सभी
सम्वाद पिछला,
बदल करवट जाग बैठे, फिर सभी अभिमान!

मिल गया धन
रंक को इस नींद में,
जुड़ा हूँ निज अंक
को मैं नींद में,
और लिख लूँ पुनः सपनों में किसी के गान!

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By: Indra Bahadur Khare

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