loader image

जावेद अख़्तर के चुनिंदा शेर

ये ज़िंदगी भी अजब कारोबार है कि मुझे
ख़ुशी है पाने की कोई न रंज खोने का


खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर ए’तिबार जाता रहा


आगही से मिली है तन्हाई
आ मिरी जान मुझ को धोका दे


हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में
कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे


उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं


छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं


फिर ख़मोशी ने साज़ छेड़ा है
फिर ख़यालात ने ली अंगड़ाई


दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग


एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं


उस के बंदों को देख कर कहिए
हम को उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे


943

Add Comment

By: Javed Akhtar

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!