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महबूब ख़िज़ाँ के चुनिंदा शेर

हम आप क़यामत से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
जीने की शिकायत है तो मर क्यूँ नहीं जाते


मिरी निगाह में कुछ और ढूँडने वाले
तिरी निगाह में कुछ और ढूँडता हूँ मैं


एक मोहब्बत काफ़ी है
बाक़ी उम्र इज़ाफ़ी है


देखते हैं बे-नियाज़ाना गुज़र सकते नहीं
कितने जीते इस लिए होंगे कि मर सकते नहीं


तुम्हें ख़याल नहीं किस तरह बताएँ तुम्हें
कि साँस चलती है लेकिन उदास चलती है


अब याद कभी आए तो आईने से पूछो
‘महबूब-ख़िज़ाँ’ शाम को घर क्यूँ नहीं जाते


कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते


किसे ख़बर कि अहल-ए-ग़म सुकून की तलाश में
शराब की तरफ़ गए शराब के लिए नहीं


देखो दुनिया है दिल है
अपनी अपनी मंज़िल है


चाही थी दिल ने तुझ से वफ़ा कम बहुत ही कम
शायद इसी लिए है गिला कम बहुत ही कम


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By: Mahboob Khizan

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