हो गया मौक़ूफ़ ये ‘सौदा’ का बिल्कुल एहतिराक़लाला बे-दाग़-ए-सियह पाने लगा नश्व-ओ-नुमा
दीं क्यों कि न वो दाग़-ए-अलम और ज़ियादाक़ीमत में बढ़े दिल के दिरम और ज़ियादा
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