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ध्यामग्न वक-शिरोमणि – नागार्जुन की कविता

ध्यामग्न
वक-शिरोमणि
पतली टाँगों के सहारे
जमे हैं झील के किनारे
जाने कौन हैं ‘इष्टदेव’ आपके !

‘इष्टदेव’ है आपके
चपल-चटुल लघु-लघु मछलियाँ…
चाँदी-सी चमकती मछलियाँ…
फिसलनशील, सुपाच्य…
सवेरे-सवेरे आप
ले चुके हैं दो बार !
अपना अल्पाऽऽहार !
आ रहे हैं जाने कब से
चिन्तन मध्य मत्स्य-शिशु
भगवान् नीराकार !

मनाता हूँ मन ही मन,
सुलभ हो आपको अपना शिकार
तभी तो जमेगा
आपका मध्यन्दिन आहार

अभी तो महोदय, आप
डटे रहो इसी प्रकार
झील के किनारे
अपने ‘इष्ट’ के ध्यान में !
अनोखा है
आपका ध्यान-योग !
महोदय, महामहिम !!

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By: Vaidyanath Mishra (nagarjun)

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