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जंगल में – नागार्जुन की कविता

जंगल में
लगी रही आग
लगातार तीन दिन, दो रात
निकटवर्ती गुफ़ावाला
बाघ का खानदान
विस्थापित हो गया

उस झरने के निकट
उसकी गुफ़ा भी
दावानल के चपेट में
आ गई थी…
वो अब किधर
भटक रहा होगा ?
रात को निकलता होगा
पूर्ववत्…

बाघिन बेचारी
अपने दोनों बच्चों पर
रात-दिन पहरा देती होगी
मध्यरात्रि में
आसपास की झाड़ियों के
चक्कर लगा आती होगी
ज़रूर ही जल्द वापस होती होगी
वात्सल्य क्या
उस ग़रीब का
स्थाई भाव न होगा
बाघ लेकिन
सारा-सारा दिन
वापस न आता होगा
हाँ, शिकार पा जाने पर
फौरन लौटता होगा बाघ !

(05.06.1985)

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By: Vaidyanath Mishra (nagarjun)

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