शेर

उबैदुल्लाह अलीम के चुनिंदा शेर

Published by
Obaidullah Aleem

ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है
आईने में चेहरा रख गया है


जो आ रही है सदा ग़ौर से सुनो उस को
कि इस सदा में ख़ुदा बोलता सा लगता है


जिस को मिलना नहीं फिर उस से मोहब्बत कैसी
सोचता जाऊँ मगर दिल में बसाए जाऊँ


शिकस्ता-हाल सा बे-आसरा सा लगता है
ये शहर दिल से ज़ियादा दुखा सा लगता है


मुझ से मिरा कोई मिलने वाला
बिछड़ा तो नहीं मगर मिला दे


इंसान हो किसी भी सदी का कहीं का हो
ये जब उठा ज़मीर की आवाज़ से उठा


तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई


खा गया इंसाँ को आशोब-ए-मआश
आ गए हैं शहर बाज़ारों के बीच


दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है
फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह


मैं एक से किसी मौसम में रह नहीं सकता
कभी विसाल कभी हिज्र से रिहाई दे


956

Page: 1 2 3 4 5

Published by
Obaidullah Aleem