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क़ाबिल अजमेरी के चुनिंदा शेर

अभी तो तन्क़ीद हो रही है मिरे मज़ाक़-ए-जुनूँ पे लेकिन
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की बरहमी का सवाल आया तो क्या करोगे


कौन याद आ गया अज़ाँ के वक़्त
बुझता जाता है दिल चराग़ जले


आज ‘क़ाबिल’ मय-कदे में इंक़लाब आने को है
अहल-ए-दिल अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक आ गए


आज जुनूँ के ढंग नए हैं
तेरी गली भी छूट न जाए


कोई दीवाना चाहे भी तो लग़्ज़िश कर नहीं सकता
तिरे कूचे में पाँव लड़खड़ाना भूल जाते हैं


कितने शोरीदा-सर मोहब्बत में
हो गए कूचा-ए-सनम की ख़ाक


कूचा-ए-यार मरकज़-ए-अनवार
अपने दामन में दश्त-ए-ग़म की ख़ाक


दिन छुपा और ग़म के साए ढले
आरज़ू के नए चराग़ जले


तुम्हारी गलियों में फिर रहा हूँ
ख़याल-ए-रस्म-ए-वफ़ा है वर्ना


मैं अपने ग़म-ख़ाना-ए-जुनूँ में
तुम्हें बुलाना भी जानता हूँ


क़ाबिल अजमेरी के शेर

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By: Qabil Ajmeri

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