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साहिर लुधियानवी के चुनिंदा शेर

इन्क़िलाबात-ए-दहर की बुनियाद
हक़ जो हक़दार तक नहीं पहुँचा


इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के
आज तक सुलगते हैं ज़ख़्म रहगुज़ारों के


बरतरी के सुबूत की ख़ातिर
ख़ूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है


आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में
फ़िक्र की रौशनी को आम करें


जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से
अम्न बेहतर निज़ाम की ख़ातिर


ये किस मक़ाम पे पहुँचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख़्तियार नहीं


तुम ने सिर्फ़ चाहा है हम ने छू के देखे हैं
पैरहन घटाओं के जिस्म बर्क़-पारों के


उधर भी ख़ाक उड़ी है इधर भी ख़ाक उड़ी
जहाँ जहाँ से बहारों के कारवाँ निकले


बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
अगर सदा न उठे कम से कम फ़ुग़ाँ निकले


किस मंज़िल-ए-मुराद की जानिब रवाँ हैं हम
ऐ रह-रवान-ए-ख़ाक-बसर पूछते चलो


साहिर लुधियानवी के शेर

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By: Sahir Ludhianvi

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