मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
होती है दिलबरों की इनायत कभी कभी
नालाँ हूँ मैं बेदारी-ए-एहसास के हाथों
दुनिया मिरे अफ़्कार की दुनिया नहीं होती
रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी
साँसों की आँच जिस्म की ख़ुश्बू न ढल सकी
ये माना मैं किसी क़ाबिल नहीं हूँ इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
कभी मिलेंगे जो रास्ते में तो मुँह फिरा कर पलट पड़ेंगे
कहीं सुनेंगे जो नाम तेरा तो चुप रहेंगे नज़र झुका के
तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
दिल-ए-ज़िंदा मिरे मरहूम अरमानों पे क्या गुज़री
आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर
देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए
मिरी नदीम मोहब्बत की रिफ़अ’तों से न गिर
बुलंद बाम-ए-हरम ही नहीं कुछ और भी है
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर