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विद्रोह – धूमिल की कविता

’ठीक है, यदि कुछ नहीं तो विद्रोह ही सही’
— हँसमुख बनिए ने कहा —
’मेरे पास उसका भी बाज़ार है’
मगर आज दुकान बन्द है, कल आना
आज इतवार है। मैं ले लूँगा।

इसे मंच दूँगा और तुम्हारा विद्रोह
मंच पाते ही समारोह बन जाएगा
फिर कोई सिरफिर शौक़ीन विदेशी ग्राहक
आएगा। मैं इसे मुँहमाँगी क़ीमत पर बेचूँगा।

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By: Sudama Pandya 'Dhumil'

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