शेर

वसीम बरेलवी के चुनिंदा शेर

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Wasim Barelvi

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ


तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है


फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं
काँटे बे-कार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं


वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी
किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता


मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता
किसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना


ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी


शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं


मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी


ग़म और होता सुन के गर आते न वो ‘वसीम’
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं


उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए


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