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वसीम बरेलवी के चुनिंदा शेर

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे


जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता


दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता


आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है


वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए’तिबार न करता तो और क्या करता


तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा


रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है


तुम आ गए हो तो कुछ चाँदनी सी बातें हों
ज़मीं पे चाँद कहाँ रोज़ रोज़ उतरता है


आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया


वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता


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By: Wasim Barelvi

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