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वसीम बरेलवी के चुनिंदा शेर

मैं ने चाहा है तुझे आम से इंसाँ की तरह
तू मिरा ख़्वाब नहीं है जो बिखर जाएगा


हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल
उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती


झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया


न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है


शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है


वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता


मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है
कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते


झूट के आगे पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जाएगा


मैं भी उसे खोने का हुनर सीख न पाया
उस को भी मुझे छोड़ के जाना नहीं आता


बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी


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By: Wasim Barelvi

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