शेर

वसीम बरेलवी के चुनिंदा शेर

Published by
Wasim Barelvi

कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता


उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे ‘वसीम’
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी


मैं उस को आँसुओं से लिख रहा हूँ
कि मेरे ब’अद कोई पढ़ न पाए


किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
मिरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है


इसी ख़याल से पलकों पे रुक गए आँसू
तिरी निगाह को शायद सुबूत-ए-ग़म न मिले


ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है


होंटों को रोज़ इक नए दरिया की आरज़ू
ले जाएगी ये प्यास की आवारगी कहाँ


भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला


इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे


आज पी लेने दे जी लेने दे मुझ को साक़ी
कल मिरी रात ख़ुदा जाने कहाँ गुज़रेगी


751

Page: 1 2 3 4 5 6 7

Published by
Wasim Barelvi