सोचता हूँ कि बुझा दूँ मैं ये कमरे का दिया
अपने साए को भी क्यूँ साथ जगाऊँ अपने
‘अनवर’ मिरी नज़र को ये किस की नज़र लगी
गोभी का फूल मुझ को लगे है गुलाब का
अजीब लुत्फ़ था नादानियों के आलम में
समझ में आईं तो बातों का वो मज़ा भी गया
जाने किस रंग से रूठेगी तबीअत उस की
जाने किस ढंग से अब उस को मनाना होगा
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
डूबे हुए तारों पे मैं क्या अश्क बहाता
चढ़ते हुए सूरज से मिरी आँख लड़ी थी
तुम आ गए तो चमकने लगी हैं दीवारें
अभी अभी तो यहाँ पर बड़ा अँधेरा था
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
नज़दीक की ऐनक से उसे कैसे मैं ढूँडूँ
जो दूर की ऐनक है कहीं दूर पड़ी है
दोस्तो इंग्लिश ज़रूरी है हमारे वास्ते
फ़ेल होने को भी इक मज़मून होना चाहिए