हमें क़रीना-ए-रंजिश कहाँ मयस्सर हैहम अपने बस में जो होते तिरा गिला करते
बे-हिर्स-ओ-ग़रज़ क़र्ज़ अदा कीजिए अपनाजिस तरह पुलिस करती है चालान वग़ैरा
वहाँ ज़ेर-ए-बहस आते ख़त-ओ-ख़ाल ओ ख़ू-ए-ख़ूबाँग़म-ए-इश्क़ पर जो ‘अनवर’ कोई सेमिनार होता
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