शेर

जिगर मुरादाबादी के चुनिंदा शेर

Published by
Jigar Moradabadi

आदत के ब’अद दर्द भी देने लगा मज़ा
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ मैं


दोनों हाथों से लूटती है हमें
कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई


हसीं तेरी आँखें हसीं तेरे आँसू
यहीं डूब जाने को जी चाहता है


इब्तिदा वो थी कि जीना था मोहब्बत में मुहाल
इंतिहा ये है कि अब मरना भी मुश्किल हो गया


आबाद अगर न दिल हो तो बरबाद कीजिए
गुलशन न बन सके तो बयाबाँ बनाइए


या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है


दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद


एक ऐसा भी वक़्त होता है
मुस्कुराहट भी आह होती है


बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर
वो ज़िंदगी है जो काँटों के दरमियाँ गुज़रे


मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर
फिर भी तिरा शबाब तिरा ही शबाब है


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Jigar Moradabadi