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उबैदुल्लाह अलीम के चुनिंदा शेर

जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई
बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई


ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए


हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग
न जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए


ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत


हाए वो लोग गए चाँद से मिलने और फिर
अपने ही टूटे हुए ख़्वाब उठा कर ले आए


तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
मुझ में तो ज़िंदगी का कोई हौसला न था


बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं


अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है


रौशनी आधी इधर आधी उधर
इक दिया रक्खा है दीवारों के बीच


मैं उस को भूल गया हूँ वो मुझ को भूल गया
तो फिर ये दिल पे क्यूँ दस्तक सी ना-गहानी हुई


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By: Obaidullah Aleem

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