loader image

ओबैदुर रहमान के चुनिंदा शेर

टूटता रहता है मुझ में ख़ुद मिरा अपना वजूद
मेरे अंदर कोई मुझ से बरसर-ए-पैकार है


मेरे जज़्बात आँसुओं वाले
शेर सब हिचकियों से लिखता हूँ


दिखाओ सूरत-ए-ताज़ा बयान से पहले
कहानी और है कुछ दास्तान से पहले


जहाँ पहुँचने की ख़्वाहिश में उम्र बीत गई
वहीं पहुँच के हयात इक ख़याल-ए-ख़ाम हुई


घटती बढ़ती रही परछाईं मिरी ख़ुद मुझ से
लाख चाहा कि मिरे क़द के बराबर उतरे


बच्चों को हम न एक खिलौना भी दे सके
ग़म और बढ़ गया है जो त्यौहार आए हैं


हमें तो ख़्वाब का इक शहर आँखों में बसाना था
और इस के बा’द मर जाने का सपना देख लेना था


तलाशे जा रहे हैं अहद-ए-रफ़्ता
ज़मीनों की खुदाई हो रही है


ओबैदुर रहमान के शेर

987

Add Comment

By: Obaidur Rahman

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!