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सबा अकबराबादी के चुनिंदा शेर

मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-शौक़ सुस्त-गाम हो क्यूँ
क़दम बढ़ाए हुए हाँ क़दम बढ़ाए हुए


क्या मआल-ए-दहर है मेरी मोहब्बत का मआल
हैं अभी लाखों फ़साने मुंतज़िर आग़ाज़ के


टुकड़े हुए थे दामन-ए-हस्ती के जिस क़दर
दल्क़-ए-गदा-ए-इश्क़ के पैवंद हो गए


इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
आईने से फ़ुर्सत हो तो तस्वीर-ए-‘सबा’ देख


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By: Saba Akhbarabadi

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