काम आएगी मिज़ाज-ए-इश्क़ की आशुफ़्तगी
और कुछ हो या न हो हंगामा-ए-महफ़िल सही
ऐसा भी कोई ग़म है जो तुम से नहीं पाया
ऐसा भी कोई दर्द है जो दिल में नहीं है
रौशनी ख़ुद भी चराग़ों से अलग रहती है
दिल में जो रहते हैं वो दिल नहीं होने पाते
ग़म-ए-दौराँ को बड़ी चीज़ समझ रक्खा था
काम जब तक न पड़ा था ग़म-ए-जानाँ से हमें
दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
अभी अर्ज़ां हूँ कभी पाओगे नायाब मुझे
कमाल-ए-ज़ब्त में यूँ अश्क-ए-मुज़्तर टूट कर निकला
असीर-ए-ग़म कोई ज़िंदाँ से जैसे छूट कर निकला
ख़्वाहिशों ने दिल को तस्वीर-ए-तमन्ना कर दिया
इक नज़र ने आइने में अक्स गहरा कर दिया
इश्क़ आता न अगर राह-नुमाई के लिए
आप भी वाक़िफ़-ए-मंज़िल नहीं होने पाते
आईना कैसा था वो शाम-ए-शकेबाई का
सामना कर न सका अपनी ही बीनाई का
कब तक यक़ीन इश्क़ हमें ख़ुद न आएगा
कब तक मकाँ का हाल कहेंगे मकीं से हम