किरनों से तराशा हुआ इक नूर का पैकर
शरमाया हुआ ख़्वाब की चौखट पे खड़ा है
याद आई न कभी बे-सर-ओ-सामानी में
देख कर घर को ग़रीब-उल-वतनी याद आई
ज़ेर-ए-पा अब न ज़मीं है न फ़लक है सर पर
सैल-ए-तख़्लीक़ भी गिर्दाब का मंज़र निकला
वहीद अख़्तर के शेर
किरनों से तराशा हुआ इक नूर का पैकर
शरमाया हुआ ख़्वाब की चौखट पे खड़ा है
याद आई न कभी बे-सर-ओ-सामानी में
देख कर घर को ग़रीब-उल-वतनी याद आई
ज़ेर-ए-पा अब न ज़मीं है न फ़लक है सर पर
सैल-ए-तख़्लीक़ भी गिर्दाब का मंज़र निकला
वहीद अख़्तर के शेर
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