न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे
अम्न था प्यार था मोहब्बत था
रंग था नूर था नवा था फ़िराक़
आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को
ये बरखा बरसाते दिन तो बिन प्रीतम बे-कार गए
उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई
ख़त्म ख़ुश-फ़हमी की मंज़िल का सफ़र भी हो गया
और सब भूल गए हर्फ़-ए-सदाक़त लिखना
रह गया काम हमारा ही बग़ावत लिखना