शेर

मिर्ज़ा ग़ालिब के चुनिंदा शेर

Published by
Mirza Ghalib

क्या फ़र्ज़ है कि सब को मिले एक सा जवाब
आओ न हम भी सैर करें कोह-ए-तूर की


बार-हा देखी हैं उन की रंजिशें
पर कुछ अब के सरगिरानी और है


वो चीज़ जिस के लिए हम को हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुलफ़ाम-ए-मुश्क-बू क्या है


छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं


हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या
न हो मरना तो जीने का मज़ा क्या


अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
उस दर पे नहीं बार तो का’बे ही को हो आए


फूँका है किस ने गोश-ए-मोहब्बत में ऐ ख़ुदा
अफ़्सून-ए-इंतिज़ार तमन्ना कहें जिसे


तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
मेरा सलाम कहियो अगर नामा-बर मिले


ना-कर्दा गुनाहों की भी हसरत की मिले दाद
या रब अगर इन कर्दा गुनाहों की सज़ा है


ये लाश-ए-बे-कफ़न ‘असद’-ए-ख़स्ता-जाँ की है
हक़ मग़फ़िरत करे अजब आज़ाद मर्द था


984

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37

Published by
Mirza Ghalib