शेर

मिर्ज़ा ग़ालिब के चुनिंदा शेर

Published by
Mirza Ghalib

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है


इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया


बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे


मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती


ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता


काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती


हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक


पूछते हैं वो कि ‘ग़ालिब’ कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या


आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती


कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता


984

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37

Published by
Mirza Ghalib