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क़तील शिफ़ाई के चुनिंदा शेर

सोच को जुरअत-ए-पर्वाज़ तो मिल लेने दो
ये ज़मीं और हमें तंग दिखाई देगी


यारो ये दौर ज़ोफ़-ए-बसारत का दौर है
आँधी उठे तो उस को घटा कह लिया करो


ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
मिरा वो राज़ तेरे हिज्र ने पहुँचा दिया सब तक


न छाँव करने को है वो आँचल न चैन लेने को हैं वो बाँहें
मुसाफ़िरों के क़रीब आ कर हर इक बसेरा पलट गया है


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By: Qateel Shifai

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