loader image

ज़हीर देहलवी के चुनिंदा शेर

हम और चाह ग़ैर की अल्लाह से डरो
मिलते हैं तुम से भी तो तुम्हारी ख़ुशी से हम


सर पे एहसान रहा बे-सर-ओ-सामानी का
ख़ार-ए-सहरा से न उलझा कभी दामन अपना


कोई पूछे तो सही हम से हमारी रूदाद
हम तो ख़ुद शौक़ में अफ़्साना बने बैठे हैं


इंसान वो क्या जिस को न हो पास ज़बाँ का
ये कोई तरीक़ा है कहा और किया और


तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं
घोल कर शहद में वो ज़हर पिला देते हैं


हुस्न की गर्मी-ए-बाज़ार इलाही तौबा
आग सी आग बरसती है ख़रीदारों पर


तुम ने पहलू में मिरे बैठ के आफ़त ढाई
और उठे भी तो इक हश्र उठा कर उट्ठे


गुदगुदाया जो उन्हें नाम किसी का ले कर
मुस्कुराने लगे वो मुँह पे दुपट्टा ले कर


बज़्म-ए-दुश्मन में जा के देख लिया
ले तुझे आज़मा के देख लिया


सब कुछ मिला हमें जो तिरे नक़्श-ए-पा मिले
हादी मिले दलील मिले रहनुमा मिले


956

Add Comment

By: Zaheer Dehlvi

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!