हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन
तुम कोई अच्छा सा रख लो अपने वीराने का नाम
मिरी जान आज का ग़म न कर कि न जाने कातिब-ए-वक़्त ने
किसी अपने कल में भी भूल कर कहीं लिख रखी हों मसर्रतें
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग
इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
महफ़िल में कुछ चराग़ फ़रोज़ाँ हुए तो हैं
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है
रक़्स-ए-मय तेज़ करो साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मय-ख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं
अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
यादों से मोअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती है
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं