नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
अब तो हर बात याद रहती है
ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया
अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं कि नाम कर रहे हैं
काम की बात मैं ने की ही नहीं
ये मिरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं
इक अजब हाल है कि अब उस को
याद करना भी बेवफ़ाई है
जान-लेवा थीं ख़्वाहिशें वर्ना
वस्ल से इंतिज़ार अच्छा था
मुझ को आदत है रूठ जाने की
आप मुझ को मना लिया कीजे
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए