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शकील बदायुनी के चुनिंदा शेर

मेरा अज़्म इतना बुलंद है कि पराए शोलों का डर नहीं
मुझे ख़ौफ़ आतिश-ए-गुल से है ये कहीं चमन को जला न दे


मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए


दिल की बर्बादियों पे नाज़ाँ हूँ
फ़तह पा कर शिकस्त खाई है


शाम-ए-ग़म करवट बदलता ही नहीं
वक़्त भी ख़ुद्दार है तेरे बग़ैर


बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था मगर
पी के इंसान हुआ जाता है


पी शौक़ से वाइज़ अरे क्या बात है डर की
दोज़ख़ तिरे क़ब्ज़े में है जन्नत तिरे घर की


ग़म की दुनिया रहे आबाद ‘शकील’
मुफ़लिसी में कोई जागीर तो है


किस से जा कर माँगिये दर्द-ए-मोहब्बत की दवा
चारा-गर अब ख़ुद ही बेचारे नज़र आने लगे


दिल की तरफ़ ‘शकील’ तवज्जोह ज़रूर हो
ये घर उजड़ गया तो बसाया न जाएगा


लम्हे उदास उदास फ़ज़ाएँ घुटी घुटी
दुनिया अगर यही है तो दुनिया से बच के चल


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By: Shakeel Badayuni

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