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यगाना चंगेज़ी के चुनिंदा शेर

बाज़ आ साहिल पे ग़ोते खाने वाले बाज़ आ
डूब मरने का मज़ा दरिया-ए-बे-साहिल में है


मुझे ऐ नाख़ुदा आख़िर किसी को मुँह दिखाना है
बहाना कर के तन्हा पार उतर जाना नहीं आता


मरते दम तक तिरी तलवार का दम भरते रहे
हक़ अदा हो न सका फिर भी वफ़ादारों से


दैर ओ हरम भी ढह गए जब दिल नहीं रहा
सब देखते ही देखते वीराना हो गया


दुनिया के साथ दीन की बेगार अल-अमाँ
इंसान आदमी न हुआ जानवर हुआ


दूर से देखने का ‘यास’ गुनहगार हूँ मैं
आश्ना तक न हुए लब कभी पैमाने से


फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
दिल अपना शाम ही से चराग़-ए-सहर हुआ


न संग-ए-मील न नक़्श-ए-क़दम न बाँग-ए-जरस
भटक न जाएँ मुसाफ़िर अदम की मंज़िल के


हुस्न-ए-ज़ाती भी छुपाए से कहीं छुपता है
सात पर्दों से अयाँ शाहिद-ए-मअ’नी होगा


दुनिया से ‘यास’ जाने को जी चाहता नहीं
अल्लाह रे हुस्न गुलशन-ए-ना-पाएदार का


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By: Yagana Changezi

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