पुकारता रहा किस किस को डूबने वाला
ख़ुदा थे इतने मगर कोई आड़े आ न गया
मुफ़लिसी में मिज़ाज शाहाना
किस मरज़ की दवा करे कोई
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
अब मय-कदा भी सैर के क़ाबिल नहीं रहा
ख़ुदा जाने अजल को पहले किस पर रहम आएगा
गिरफ़्तार-ए-क़फ़स पर या गिरफ़्तार-ए-नशेमन पर
मुझे दिल की ख़ता पर ‘यास’ शर्माना नहीं आता
पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता
ग़ालिब और मीरज़ा ‘यगाना’ का
आज क्या फ़ैसला करे कोई
का’बा नहीं कि सारी ख़ुदाई को दख़्ल हो
दिल में सिवाए यार किसी का गुज़र नहीं
पयाम-ए-ज़ेर-ए-लब ऐसा कि कुछ सुना न गया
इशारा पाते ही अंगड़ाई ली रहा न गया
आ रही है ये सदा कान में वीरानों से
कल की है बात कि आबाद थे दीवानों से
ख़ुदा ही जाने ‘यगाना’ मैं कौन हूँ क्या हूँ
ख़ुद अपनी ज़ात पे शक दिल में आए हैं क्या क्या