जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए
ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया
अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था
जो ग़ज़ल आज तिरे हिज्र में लिक्खी है वो कल
क्या ख़बर अहल-ए-मोहब्बत का तराना बन जाए
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
हर तरह की बे-सर-ओ-सामानियों के बावजूद
आज वो आया तो मुझ को अपना घर अच्छा लगा
मैं भी पलकों पे सजा लूँगा लहू की बूँदें
तुम भी पा-बस्ता-ए-ज़ंजीर-ए-हिना हो जाना
नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
रोज़ आ जाता है समझाता है यूँ है यूँ है
सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
वो एक शख़्स कि शाएर बना गया मुझ को
न तुझ को मात हुई है न मुझ को मात हुई
सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
रात भर हँसते हुए तारों ने
उन के आरिज़ भी भिगोए होंगे