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अहमद फ़राज़ के चुनिंदा शेर

तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए


अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम


सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं


आशिक़ी में ‘मीर’ जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो


तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे


कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा


अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ


ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें


मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी
तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है


अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो
आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए


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By: Ahmad Faraz

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