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अहमद फ़राज़ के चुनिंदा शेर

उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो तुम तन्हा रह जाओगे


इस से बढ़ कर कोई इनआम-ए-हुनर क्या है ‘फ़राज़’
अपने ही अहद में एक शख़्स फ़साना बन जाए


सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं


जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो


जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे


हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए


किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
देखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है


बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर
चलो ‘फ़राज़’ को ऐ यार चल के देखते हैं


हुजूम ऐसा कि राहें नज़र नहीं आतीं
नसीब ऐसा कि अब तक तो क़ाफ़िला न हुआ


मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गए आईना दिखा के मुझे


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By: Ahmad Faraz

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