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हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

देखने आए थे वो अपनी मोहब्बत का असर
कहने को ये है कि आए हैं अयादत कर के


कहने को तो मैं भूल गया हूँ मगर ऐ यार
है ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर अभी तक


इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास


वाक़िफ़ हैं ख़ूब आप के तर्ज़-ए-जफ़ा से हम
इज़हार-ए-इल्तिफ़ात की ज़हमत न कीजिए


आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल
सुल्ह से अच्छी रही मुझ को लड़ाई आप की


शेर दर-अस्ल हैं वही ‘हसरत’
सुनते ही दिल में जो उतर जाएँ


और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
इक तिरे दर्द को पहलू में छुपा रक्खा है


बर्क़ को अब्र के दामन में छुपा देखा है
हम ने उस शोख़ को मजबूर-ए-हया देखा है


दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है


मालूम सब है पूछते हो फिर भी मुद्दआ’
अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम


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By: Hasrat Mohani

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