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हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया


‘हसरत’ जो सुन रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का हाल
इस में भी कुछ फ़रेब तिरी दास्ताँ के हैं


ख़ंदा-ए-अहल-ए-जहाँ की मुझे पर्वा क्या है
तुम भी हँसते हो मिरे हाल पे रोना है यही


रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह
वाइज़ भी किस क़दर है मज़ाक़-ए-सुख़न से दूर


ऐ याद-ए-यार देख कि बा-वस्फ़-ए-रंज-ए-हिज्र
मसरूर हैं तिरी ख़लिश-ए-ना-तवाँ से हम


ग़ुर्बत की सुब्ह में भी नहीं है वो रौशनी
जो रौशनी कि शाम-ए-सवाद-ए-वतन में था


पुर्सिश-ए-हाल पे है ख़ातिर-ए-जानाँ माइल
जुरअत-ए-कोशिश-ए-इज़हार कहाँ से लाऊँ


है वहाँ शान-ए-तग़ाफ़ुल को जफ़ा से भी गुरेज़
इल्तिफ़ात-ए-निगह-ए-यार कहाँ से लाऊँ


इल्तिफ़ात-ए-यार था इक ख़्वाब-ए-आग़ाज़-ए-वफ़ा
सच हुआ करती हैं इन ख़्वाबों की ताबीरें कहीं


भूली नहीं दिल को तिरी दुज़दीदा-निगाही
पहलू में है कुछ कुछ ख़लिश-ए-तीर अभी तक


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By: Hasrat Mohani

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