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हसरत मोहानी के चुनिंदा शेर

गुज़रे बहुत उस्ताद मगर रंग-ए-असर में
बे-मिस्ल है ‘हसरत’ सुख़न-ए-‘मीर’ अभी तक


ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की
दामनों की न ख़बर है न गिरेबानों की


मुनहसिर वक़्त-ए-मुक़र्रर पे मुलाक़ात हुई
आज ये आप की जानिब से नई बात हुई


कोशिशें हम ने कीं हज़ार मगर
इश्क़ में एक मो’तबर न हुई


ख़िरद का नाम जुनूँ पड़ गया जुनूँ का ख़िरद
जो चाहे आप का हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ करे


ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
दिल की बे-इख़्तियारियाँ न गईं


रात दिन नामा-ओ-पैग़ाम कहाँ तक दोगे
साफ़ कह दीजिए मिलना हमें मंज़ूर नहीं


राह में मिलिए कभी मुझ से तो अज़-राह-ए-सितम
होंट अपना काट कर फ़ौरन जुदा हो जाइए


भूल ही जाएँ हम को ये तो न हो
लोग मेरे लिए दुआ न करें


तोड़ कर अहद-ए-करम ना-आश्ना हो जाइए
बंदा-परवर जाइए अच्छा ख़फ़ा हो जाइए


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By: Hasrat Mohani

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