हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा कर दिया
क्या किया मैं ने कि इज़हार-ए-तमन्ना कर दिया
‘हसरत’ बहुत है मर्तबा-ए-आशिक़ी बुलंद
तुझ को तो मुफ़्त लोगों ने मशहूर कर दिया
उन को याँ वादे पे आ लेने दे ऐ अब्र-ए-बहार
जिस क़दर चाहना फिर बाद में बरसा करना
क्या बला थी अदा-ए-पुर्सिश-ए-यार
मुझ से इज़हार-ए-मुद्दआ न हुआ
दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ाद
तिरे जुनूँ का ख़ुदा सिलसिला दराज़ करे
ये भी आदाब-ए-मोहब्बत ने गवारा न किया
उन की तस्वीर भी आँखों से लगाई न गई
मुझ से तन्हाई में गर मिलिए तो दीजे गालियाँ
और बज़्म-ए-ग़ैर में जान-ए-हया हो जाइए
हम जौर-परस्तों पे गुमाँ तर्क-ए-वफ़ा का
ये वहम कहीं तुम को गुनहगार न कर दे
छेड़ा है दस्त-ए-शौक़ ने मुझ से ख़फ़ा हैं वो
गोया कि अपने दिल पे मुझे इख़्तियार है
लगा कर आँख इस जान-ए-जहाँ से
न होगा अब किसी से आश्ना दिल