शेर

मीर तक़ी मीर के चुनिंदा शेर

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Mir Taqi Mir

मीर क्या सादे हैं बीमार हुए जिस के सबब
उसी अत्तार के लड़के से दवा लेते हैं


तदबीर मेरे इश्क़ की क्या फ़ाएदा तबीब
अब जान ही के साथ ये आज़ार जाएगा


परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले


आशिक़ों की ख़स्तगी बद-हाली की पर्वा नहीं
ऐ सरापा नाज़ तू ने बे-नियाज़ी ख़ूब की


लगा न दिल को कहीं क्या सुना नहीं तू ने
जो कुछ कि ‘मीर’ का इस आशिक़ी ने हाल किया


हम आप ही को अपना मक़्सूद जानते हैं
अपने सिवाए किस को मौजूद जानते हैं


दीदनी है शिकस्तगी दिल की
क्या इमारत ग़मों ने ढाई है


मर्ग इक माँदगी का वक़्फ़ा है
यानी आगे चलेंगे दम ले कर


जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा
तो हम-साया काहे को सोता रहेगा


इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़


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