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शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ के चुनिंदा शेर

हो गया मौक़ूफ़ ये ‘सौदा’ का बिल्कुल एहतिराक़
लाला बे-दाग़-ए-सियह पाने लगा नश्व-ओ-नुमा


दीं क्यों कि न वो दाग़-ए-अलम और ज़ियादा
क़ीमत में बढ़े दिल के दिरम और ज़ियादा


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By: Muhammad Ibrahim Zauq

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