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नासिर काज़मी के चुनिंदा शेर

नए कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिए
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया मैं बाहर जाऊँ किस के लिए


भरी दुनिया में जी नहीं लगता
जाने किस चीज़ की कमी है अभी


मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं


इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए


जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया


वक़्त अच्छा भी आएगा ‘नासिर’
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी


दिल तो मेरा उदास है ‘नासिर’
शहर क्यूँ साएँ साएँ करता है


नई दुनिया के हंगामों में ‘नासिर’
दबी जाती हैं आवाज़ें पुरानी


याद है अब तक तुझ से बिछड़ने की वो अँधेरी शाम मुझे
तू ख़ामोश खड़ा था लेकिन बातें करता था काजल


आज तो बे-सबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी


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By: Nasir Kazmi

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