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नासिर काज़मी के चुनिंदा शेर

याद आई वो पहली बारिश
जब तुझे एक नज़र देखा था


एक दम उस के होंट चूम लिए
ये मुझे बैठे बैठे क्या सूझी


ओ मेरे मसरूफ़ ख़ुदा
अपनी दुनिया देख ज़रा


दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया


ये हक़ीक़त है कि अहबाब को हम
याद ही कब थे जो अब याद नहीं


चुप चुप क्यूँ रहते हो ‘नासिर’
ये क्या रोग लगा रक्खा है


बुलाऊँगा न मिलूँगा न ख़त लिखूँगा तुझे
तिरी ख़ुशी के लिए ख़ुद को ये सज़ा दूँगा


कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर ही ले चलें
आए हैं इस गली में तो पत्थर ही ले चलें


ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया


जिन्हें हम देख कर जीते थे ‘नासिर’
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं


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By: Nasir Kazmi

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